~¤Akash¤~
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कल एक नाकिद-ऐ-ग़ालिब ने मुझसे ऐ पूछा
की ए कद्रे-ग़ालिब-ऐ-मरहूम का सबब क्या है,
मुझे बताओ की दीवान-ऐ-हजरते ग़ालिब
"कलम-ऐ-पाक" है, "इंजील" है, की "गीता" है
सुना है अपने कराची में एक साहब है,
कलम उनका भी ग़ालिब से मिलता-जुलता है
तो फिर ऐ ग़ालिब-ऐ-मरहूम ही की बरसी क्यूँ
मुझे बताओ की इनमे खुसूसियत क्या है,
मुझे तो "मीर तकी मीर" से है एक लगाव
की मीर कुछ भी सही सायरी तो करता है
कहाँ के ऐसे बड़े आर्टिस्ट थे ग़ालिब
ऐ चंद अहले-अदब का प्रपोगंडा है!
कभी पि है मय हसीनो के धौल-धप्पे में
कभी किसी का वो सोते में बोसा लेते है
जो केह रहे है की ग़ालिब है फलसफी शायर
मुझे बताये की बोसे में फलसफा क्या है!
कहा जो मैंने की पढिये तो पहले ग़ालिब को
तो बोले खाक पढू, मुद्दा तो अन्न्का है
मुझे खबर है की ग़ालिब की शायरी क्या है
की मैंने हजरते-ग़ालिब का फिल्म देखा है!
सुनी जो मैंने ऐ तनकीद तो समझ न सका
की अदबी को ग़ालिब से दुश्मनी क्या है
बढ़ी जो बहस तो, फिर मैंने उसको समझाया
अदब में हजरते-ग़ालिब का मर्तबा क्या है
बताया उसको की वो ज़िन्दगी का है शायर
बहुत करीब से दुनिया को उसने देखा है
वो लिख रहा है हिकयात-ऐ-खुन्चाकन-ऐ-जुनू
तभी तो उसके कलाम से लहू टपकता है
अजब तजाद की हमील hai सक्सियत उसकी
अजीब शख्स है बर्बाद हो के भी हसता है
जो उसको रोकना चाहो तो और तेज बहे
अजीब मौजे-रवा है, अजीब दरिया है
बस एक लफ्ज में एक दास्तान बयाँ करना
ऐ फ़िक्र-फन की बुलंदी उसी का हिस्षा है
पहुच गया है, वो उस मंजिले-ताफ्फुक्कर पर
जहा दिमाग भी दिल की तरह धडकता है
कभी तो उसका कोई शेर-ऐ-सादा-ओ-रंगीन
रूखे-बशर की तरह कैफियत बदलता है
हजारो लोगो ने चाह की उसके साथ चले
मगर वो पहले भी तनहा था, अब भी तनहा है !!
दाग "देहलवी"
की ए कद्रे-ग़ालिब-ऐ-मरहूम का सबब क्या है,
मुझे बताओ की दीवान-ऐ-हजरते ग़ालिब
"कलम-ऐ-पाक" है, "इंजील" है, की "गीता" है
सुना है अपने कराची में एक साहब है,
कलम उनका भी ग़ालिब से मिलता-जुलता है
तो फिर ऐ ग़ालिब-ऐ-मरहूम ही की बरसी क्यूँ
मुझे बताओ की इनमे खुसूसियत क्या है,
मुझे तो "मीर तकी मीर" से है एक लगाव
की मीर कुछ भी सही सायरी तो करता है
कहाँ के ऐसे बड़े आर्टिस्ट थे ग़ालिब
ऐ चंद अहले-अदब का प्रपोगंडा है!
कभी पि है मय हसीनो के धौल-धप्पे में
कभी किसी का वो सोते में बोसा लेते है
जो केह रहे है की ग़ालिब है फलसफी शायर
मुझे बताये की बोसे में फलसफा क्या है!
कहा जो मैंने की पढिये तो पहले ग़ालिब को
तो बोले खाक पढू, मुद्दा तो अन्न्का है
मुझे खबर है की ग़ालिब की शायरी क्या है
की मैंने हजरते-ग़ालिब का फिल्म देखा है!
सुनी जो मैंने ऐ तनकीद तो समझ न सका
की अदबी को ग़ालिब से दुश्मनी क्या है
बढ़ी जो बहस तो, फिर मैंने उसको समझाया
अदब में हजरते-ग़ालिब का मर्तबा क्या है
बताया उसको की वो ज़िन्दगी का है शायर
बहुत करीब से दुनिया को उसने देखा है
वो लिख रहा है हिकयात-ऐ-खुन्चाकन-ऐ-जुनू
तभी तो उसके कलाम से लहू टपकता है
अजब तजाद की हमील hai सक्सियत उसकी
अजीब शख्स है बर्बाद हो के भी हसता है
जो उसको रोकना चाहो तो और तेज बहे
अजीब मौजे-रवा है, अजीब दरिया है
बस एक लफ्ज में एक दास्तान बयाँ करना
ऐ फ़िक्र-फन की बुलंदी उसी का हिस्षा है
पहुच गया है, वो उस मंजिले-ताफ्फुक्कर पर
जहा दिमाग भी दिल की तरह धडकता है
कभी तो उसका कोई शेर-ऐ-सादा-ओ-रंगीन
रूखे-बशर की तरह कैफियत बदलता है
हजारो लोगो ने चाह की उसके साथ चले
मगर वो पहले भी तनहा था, अब भी तनहा है !!
दाग "देहलवी"