मेरा दिल, मेरा जिगर, मेरी जान है वो, क्या करूँ

~¤Akash¤~

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मेरा दिल, मेरा जिगर, मेरी जान है वो,
क्या करूँ मगर, मुझसे बदगुमान है वो,

वो रखता है कुल जहाँ की खबर यूँ तो,
कैसे अब तक मेरे ग़मों से अंजान है वो....

न आंसूं न खून-ऐ-जिगर से पिघलता है,
पत्थर नहीं तो फिर कैसा इंसान है वो.....

वो मेरे वजूद से रिश्ता अजीब रखता है,
कि मेरे खयालो में मेरी पहचान है वो....
 
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