Palang Tod
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1. ईश्वर एक है, सर्वशक्तिमान है एवं सर्वसमर्थ है।
2. एक ही ईश्वर को संसार में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। कोई भगवान, कोई अल्लाह, कोई परमात्मा, कोई वाहे गुरु आदि भिन्न-भिन्न नामों से ईश्वर को पुकारता है।
3. सत्य, दया, अहिंसा, प्रेम, सेवा, परोपकार, त्याग, सादगी आदि उच्चतम मानवीय आदर्शों को जीवन में अपनाना ही मनुष्यों की पहचान है।
4. सभी मनुष्यों एवं अन्य जीवों में भी अपना ही रूप देखना एवं प्रेम व भाईचारे से जीवन यापन करना ही मनुष्य का धर्म है।
5. सांसारिक सुख-वैभव एवं भोग विलास को क्षणिक, नष्ट होने वाला और अस्थाई मानकर उसमें मन को न लगाना।
6. आत्मा को ही अपना वास्तविक स्वरूप मानकर शारीरिक सुख-भोग में जीवन को व्यर्थ न गवाना।
7. दूसरों में दोष न देखकर अपने ही अवगुणों को खोजना एवं दूर करना।
8. आत्मा ही मनुष्य का वास्तविक स्वरूप है। आत्मा अजन्मा एवं अमर है। मृत्यु में सिर्फ शरीर बदलता है, आत्मा अजर, अमर एवं अविनाशी है।
9. सेवा, परोपकार एवं सद्कर्मांे के द्वारा मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य जिसे पूर्णता, मोक्ष, निर्वाण एवं आत्मज्ञान कहा जाना, को प्राप्त किया जाता है।
10. पूर्ण पवित्रता, नैतिकता, एवं सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए जीवन के अंतिम लक्ष्य को खोजना और प्राप्त करना ही जीवन की सार्थकता एवं उपयोगिता है।
2. एक ही ईश्वर को संसार में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। कोई भगवान, कोई अल्लाह, कोई परमात्मा, कोई वाहे गुरु आदि भिन्न-भिन्न नामों से ईश्वर को पुकारता है।
3. सत्य, दया, अहिंसा, प्रेम, सेवा, परोपकार, त्याग, सादगी आदि उच्चतम मानवीय आदर्शों को जीवन में अपनाना ही मनुष्यों की पहचान है।
4. सभी मनुष्यों एवं अन्य जीवों में भी अपना ही रूप देखना एवं प्रेम व भाईचारे से जीवन यापन करना ही मनुष्य का धर्म है।
5. सांसारिक सुख-वैभव एवं भोग विलास को क्षणिक, नष्ट होने वाला और अस्थाई मानकर उसमें मन को न लगाना।
6. आत्मा को ही अपना वास्तविक स्वरूप मानकर शारीरिक सुख-भोग में जीवन को व्यर्थ न गवाना।
7. दूसरों में दोष न देखकर अपने ही अवगुणों को खोजना एवं दूर करना।
8. आत्मा ही मनुष्य का वास्तविक स्वरूप है। आत्मा अजन्मा एवं अमर है। मृत्यु में सिर्फ शरीर बदलता है, आत्मा अजर, अमर एवं अविनाशी है।
9. सेवा, परोपकार एवं सद्कर्मांे के द्वारा मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य जिसे पूर्णता, मोक्ष, निर्वाण एवं आत्मज्ञान कहा जाना, को प्राप्त किया जाता है।
10. पूर्ण पवित्रता, नैतिकता, एवं सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए जीवन के अंतिम लक्ष्य को खोजना और प्राप्त करना ही जीवन की सार्थकता एवं उपयोगिता है।