~¤Akash¤~
Prime VIP
तुम जैसा समझते रहे वैसा तो नहीं मैं
कांटा हूँ मगर फूल पे चुभता तो नहीं मैं
अपनों से तो रूठा हूँ मैं सौ बार बहरहाल
पर गैरों में जाकर कभी बैठा तो नहीं मैं
रोता है अब भी दिल मेरा अक्सर ये सोचकर
भूला हैं मुझे वो, उसे भूला तो नहीं मैं
खुद्दारी की कुछ दाद तो तुम्ही दो मेरी आँखों
हालात तो रोने के थे रोया तो नहीं मैं
कांटा हूँ मगर फूल पे चुभता तो नहीं मैं
अपनों से तो रूठा हूँ मैं सौ बार बहरहाल
पर गैरों में जाकर कभी बैठा तो नहीं मैं
रोता है अब भी दिल मेरा अक्सर ये सोचकर
भूला हैं मुझे वो, उसे भूला तो नहीं मैं
खुद्दारी की कुछ दाद तो तुम्ही दो मेरी आँखों
हालात तो रोने के थे रोया तो नहीं मैं