मैं पेड़ हूँ सूखा..........यहाँ पंछी नहीं रहते....

~¤Akash¤~

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कहेंगे ज़िन्दगी खुद को हम सुखनवर नहीं कहते
रहते हैं अपनी ग़ज़ल में, कभी खुद में नहीं रहते

झुकाकर जिए जो सर भला वो ज़िन्दगी ही क्या
यूँ तमकनत में भी जीने को जीना नहीं कहते

औरों के उसने झूट भी सच्चे बता दिये
हम सच भी कहे तो कभी सच्चा नहीं कहते

खुद बोले ना बढ़कर किसी प्यासे की तड़प पर
उस दरिया को हम तो कभी दरिया नहीं कहते

और आये ना दरिया किसी प्यासे की तड़फ पर
उस प्यासे को भी हम कभी प्यासा नहीं कहते

औरों से अपने दिल की वो कह देते हैं सब कुछ
हमसे तो अयान वो कभी कुछ भी नहीं कहते

ना उसने कभी हमको अपना सा बताया
हम भी कभी उसको अब हमसा नहीं कहते

यारों से बिगड़ जाए कभी बात जो अपनी
गैरों में अयान हम कभी जाकर नहीं रहते

औरों की हर एक बात हम सुनते हैं गौर से
पर दिल की कोई बात किसी से नहीं कहते

लेकर के आ गया हैं क्यूँ सैय्याद कफस को
मैं पेड़ हूँ सूखा..........यहाँ पंछी नहीं रहते....
 
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