उलझ गया

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
उलझ गया
अधूरा सा खयाल
तंग गली में
पास की दीवार से
कानाफूसी कर
अचानक शोर बन फिर
गली में छोटे बच्चे
सा दौड़ कर भागा
ओह! ये ख़याल भी।
बिना किसी लगाम के
कभी भी कहीं भी
भागता फिरता है
आसमान से लटक कर
कभी हवा में उछल कर
इतराता है, झूमता है,
अपनी ही बेख़याली में
इधर उधर घूमता है,
मगर ज़मीं से दुश्मनी है
ज़मीन पर पांव जलते हैं इसके
शाख पे बैठा आज भी
मुझ से लड़ रहा
इस ख़याल ने सच हरा दिया मुझे।
 
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