~¤Akash¤~
Prime VIP
'' माँ ''
गुलज़ार साब की नज़्म जो उन्होनें अपनी माँ को समर्पित की है!
तुझे पहचानूंगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
ढूँढा करता हूं तुम्हें
अपने चेहरे में ही कहीं
लोग कहते हैं
मेरी आँखें मेरी माँ सी हैं
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से
मगर प्यासी हैं
कान में छेद है
पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लिये
कान छिदाया होगा
सामने दाँतों का वक़्फा है
तेरे भी होगा
एक चक्कर
तेरे पाँव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी
जन्म दिया, दौड़ गयी
क्या खुदा देख लिया था
कि मुझे छोड़ गयी
मेल के देखता हूं
मिल ही जाए तुझसी कहीं
तेरे बिन ओपरी लगती है
मुझे सारी जमीं
तुझे पहचानूंगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं !!
गुलज़ार साब की नज़्म जो उन्होनें अपनी माँ को समर्पित की है!
तुझे पहचानूंगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
ढूँढा करता हूं तुम्हें
अपने चेहरे में ही कहीं
लोग कहते हैं
मेरी आँखें मेरी माँ सी हैं
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से
मगर प्यासी हैं
कान में छेद है
पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लिये
कान छिदाया होगा
सामने दाँतों का वक़्फा है
तेरे भी होगा
एक चक्कर
तेरे पाँव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी
जन्म दिया, दौड़ गयी
क्या खुदा देख लिया था
कि मुझे छोड़ गयी
मेल के देखता हूं
मिल ही जाए तुझसी कहीं
तेरे बिन ओपरी लगती है
मुझे सारी जमीं
तुझे पहचानूंगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं !!