ज़िन्दगी ऐसी क्यों होती है --

ज़िन्दगी ऐसी क्यों होती है --

कभी हस्ती है
कभी रोती है
पहाड़ दुखो का ढोती है
तन्हा भी कभी होती है
खुद ही चुनती है राहें
खुद ही उन पर खोती है
अक्सर बैठ कर अकेले में
ये फुर्सत से क्यूँ रोती है
जिससे करती है प्यार बहुत
उस ही को ये खो देती है
मंजिल के होती है करीब मगर
फिर राहें क्यूँ खो देती है
जुल्म भी हँस के सहती है
जुल्मो का जवाब भी देती है
रहती तो है शोर शराबे में
खामोश फिर क्यूँ ये होती है

ज़िन्दगी ऐसी क्यूँ होती है--

फूलों की सेज बिछाती है
पर काँटों पर भी चलती है
चाहती तो है सब कुछ कहना
पर कुछ भी कहने से डरती है
होंसला भी देती है
मुसीबतों से लड़ने का
किस्मत के आगे ना जाने
फिर क्यूँ हार जाती है
वैसे तो देखा जाये तो
असल में ये प्यार चाहती है
जुदा होना भी अच्छा नहीं लगता
फांसले भी बना कर रखती है
खुली आँखों से देखना चाहती है सब कुछ
परदे भी गिरा कर रखती है
शोहरत भी पाना चाहती है लेकिन
बदनाम भी अक्सर ये होती है

ज़िन्दगी ऐसी क्यूँ होती है --

हसरतें तो बहुत है लेकिन
कुछ ही को पूरा कर पाती है
उड़ना भी चाहती है मगर
पर निचे भी गिर जाती है
हर वक़्त रखती है याद जिसे
वक़्त आने पर उसे भूल जाती है
सोचती तो है दोनों ही तरफ
पर फैसला कहाँ कर पाती है
कहना चाहती है सच लेकिन
साथ झूठ का कहाँ छोड़ पाती है
हार के हिम्मत हो के निराश
न जाने कमजोर क्यूँ हो जाती है
ज़िन्दगी नाम है जिन्दादिली का
फिर मायूस क्यूँ ये होती है
औरो के कर के चिराग रोशन
अंधेरो में क्यूँ ये खोती है

ज़िन्दगी ऐसी क्यूँ होती है .....!!

kalm :- harman bajwa ( mustapuria )


 
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