जिंदगी कुछ इस तरह


ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र जाती है
बातों ही बातों में
फिर क्यों न हम
हर पल को जी भर के जिएँ,
खुशबू को
घर के एक कोने में कैद करें
और रंगों को बिखेर दें
बदरंग सी राहों पर,
अपने चेहरे से
विषाद की लकीरों को मिटा कर मुस्कुराएँ
और ग़मगीन चेहरों को भी
थोड़ी सी मुस्कुराहट बाटें,
किसी के आंसुओं को
चुरा कर उसकी पलकों से
सराबोर कर दें उसे
स्नेह की वर्षा में,
अपने अरमानों की पतंग को
सपनों की डोर में पिरो कर
मुक्त आकाश में उड़ाएं
या फिर सपनों को पलकों में सजा लें,
रात में छत पर लेट कर
तारों को देखें
या फिर चांदनी में नहा कर
अपने हृदय के वस्त्र बदलें
और उत्सव मनाएं,
आओ हम खुशियों को
जीवन में आमंत्रित करें
और जिंदगी को जी भर के जिएँ !
 
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