dilbardeewana
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सर छड़ गए तो फिर उतरता नहीं
ये इश्क़ भी ग़रीब की क़र्ज़ जैसा हैं
ज़ख्म खरीद लाया हूँ बाज़ार-ए-दर्द से
दिल ज़िद कर रहा था मुझे मोहब्बत चाहिए
ना जाने इस ज़िद का नतीजा क्या होगा
समझता दिल भी नहीं, वो भी नहीं, हम भी नहीं
हर वक़्त ख़याल-ए-यार
ऐ दिल.... तू मेरा कुछ नहीं लगता