अब आँख अपनी और उठाने ना दो यारों..

~¤Akash¤~

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दर-ओ-दीवार अपने दिल में उठाने ना दो यारों
कई आँगन अब अपने घर में बनाने ना दो यारों

वो चाहते हैं के तक्शीम रहें हिंदू मुसलमाँ
तहजीब पुरानी ये मिटाने ना दो यारों

गिरा दो हर मुल्क के दुश्मन को नज़र से
मंदिर ओ मस्जिद को गिराने ना दो यारों

बैठे हुए हैं ताक में फिर गजनवी कई
इस बार अपने घर को लुटाने ना दो यारों

कर दो कलम वो सर जो जयचंद बने हैं
अब दुश्मनों से हाथ मिलाने ना दो यारों

बख्शी हैं ज़िन्दगी उन्होंने अपने खून से
शहीदों की शहादत को भुलाने ना दो यारों

हस्ती मिटा दो, मुल्क पे डाले जो बद नजर
अब आँख अपनी और उठाने ना दो यारों..
 
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