ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे वो महरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता वो बदगुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे कातिल "सिफई"