सज गई हैं फिर

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
सज गई हैं फिर
बहारें आम पर
लौट सूरज आ गया है
काम पर
फूल कर सरसों
बहुत इतरा गई
डालियाँ कचनार की
गदरा गई
झुरमुटों में कुहकतीं शहनाइयाँ।

चमक लौटी है
सुबह के भाल पर
किरन गुदने लिख रही हैं
गाल पर
रंग टेसू ने उड़ाए
फाग के
दिन बसंती
प्यार के अनुराग के
सिर चढ़ी सी हो गईं पुरवाइयाँ।

फागुनी दिन,
औऱ, महुआ पी गए
फाग-मस्ती-रूप के-
ठनगन नए
पाँव भारी
और
भरते रस कलश
खेत में सोना झरेगा
इस बरस
सपन लेते आँख में अंगडाइयाँ
 
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