Saini Sa'aB
K00l$@!n!
अभिसार वाले दिन
फ़र्श मखमल के
बिछाए खेत ने,
मेड़ पर फिरसे कहीं
पाजेब झनकी है,
गीत कोई घर गया है-
अधर पर,
चूड़ियों में फिर
किसी की ग़ज़ल खनकी है
पास आओ!
बात वासंती करें
लौट आए फिर-
मिलन-अभिसार वाले दिन।
रंग सिंदूरी
कपोलों पर झरे
डाल टेसू की
दहक उठ्ठी अंगारों में
याद के खरगोश
बैठे गोद में
झूमती है फूलकर
सरसों कद्दारों में,
रूप-रस-मकरंद-घर
ले आ गए,
मान करते
रीझते
मनुहार वाले दिन।
हैं हवाओं के चलन
महुआ पिए
द्वार की रांगोलिका
वाचाल लगती है
श्वेतकेशी बर्फ़ ने
मेहंदी रची
साँस, ओठों पर धरा-
रूमाल लगती है
यों फिसल जाएँ न,
कँपते हाथ से
शहद से भीगे,
सरस,
कचनारवाले दिन।
फ़र्श मखमल के
बिछाए खेत ने,
मेड़ पर फिरसे कहीं
पाजेब झनकी है,
गीत कोई घर गया है-
अधर पर,
चूड़ियों में फिर
किसी की ग़ज़ल खनकी है
पास आओ!
बात वासंती करें
लौट आए फिर-
मिलन-अभिसार वाले दिन।
रंग सिंदूरी
कपोलों पर झरे
डाल टेसू की
दहक उठ्ठी अंगारों में
याद के खरगोश
बैठे गोद में
झूमती है फूलकर
सरसों कद्दारों में,
रूप-रस-मकरंद-घर
ले आ गए,
मान करते
रीझते
मनुहार वाले दिन।
हैं हवाओं के चलन
महुआ पिए
द्वार की रांगोलिका
वाचाल लगती है
श्वेतकेशी बर्फ़ ने
मेहंदी रची
साँस, ओठों पर धरा-
रूमाल लगती है
यों फिसल जाएँ न,
कँपते हाथ से
शहद से भीगे,
सरस,
कचनारवाले दिन।