'MANISH'
yaara naal bahara
जैसे हिंदू या भगवा आतंकवाद शब्द अग्राह्य हैं, वैसे ही मुस्लिम या इस्लामी आतंकवाद शब्द भी अग्राह्य होना चाहिए। इन शब्दों का प्रयोग करकेहम व्यापक समुदायों को जबर्दस्ती आतंकवाद से जोड़ने का आयोजन कर देते हैं।
क्याआतंकवाद का कोई रंग होता है? चिदंबरम ने उसे भगवा आतंकवाद क्यों कह दिया? आतंकवाद को भगवा रंग में क्यों रंग दिया? भगवा रंग तो त्याग का, तपस्या का, शांति का, अहिंसा का रंग है। भगवा रंग जो भी धारण करता है, माना जाता है कि वह संन्यासी हो गया। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह से वह ऊपर उठ गया। इसीलिए चिदंबरम बोलकर बिदक गए। उन्होंने उस शब्द को दोहराया नहीं। कांग्रेस पार्टी ने भी इस बयान से खुद को अलग कर लिया। अब चिदंबरम क्या करते? वे अपना-सा मुंह लेकर रह गए।
लेकिन कोई क्या चिदंबरम की मजबूरी समझने की भी कोशिश करेगा? पता नहीं वे तमिल कितनी जानते हैं, लेकिन संस्कृत और हिंदी से वे अनभिज्ञ हैं, यह सभी को पता है। उनकी शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई है। हालांकि वे लोकसभा के चुनाव जीतकर ही मंत्री बनते हैं, लेकिन भारत को वे कितना समझते हैं, कहना कठिन है।
उन्हें क्या पता कि भगवा शब्द की महत्ता क्या है? उसकी व्याप्ति कितनी है? भारतीय दिमाग पर उसकी पकड़ कितनी है? उन्होंने अंग्रेजी का ‘सेफरन’ शब्द प्रयोग किया। यानी केसरिया! केसरिया बाना कब धारण किया जाता है, केसरिया पगड़ी या केसरिया उत्तरीय का भारतीय संस्कृति में क्या महत्व है, यह भारत के गृहमंत्री को पता तो होना चाहिए।
भगवा और केसरिया रंग बिल्कुल एक-जैसे नहीं होते। फिर भी अंग्रेजी-भाषा की शब्द-सामथ्र्य की कमी के कारण दोनों शब्दों को एक-जैसा ही मान लिया जाता है। चिदंबरम ने उसे केसरिया कहा या भगवा, इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। उसका अर्थ वही समझा गया, जो समझा जाना चाहिए था।
भगवा आतंकवाद शब्द पर भाजपा और संघ का भड़कना तो स्वाभाविक ही था, क्योंकि भगवा रंग पर राजनीतिक एकाधिकार किन्हीं संगठनों का अगर है तो इन्हीं का है। हालांकि कांग्रेस पार्टी के ध्वज में भी भगवा रंग सबसे ऊपर है, लेकिन भगवा रंग पर आप जब प्रहार करते हैं तो भाजपा, शिवेसना, संघ आदि संगठनों को ही आप अपना निशाना बनाते हैं। चिदंबरम के बयान का मतलब साफ था। वे इन्हीं संगठनों को इस नए आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे।
वे हिंदू आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते तो और बुरी तरह से फंस जाते। उन्होंने सरल रास्ता चुना। लेकिन यह सरल रास्ता भी उन्हें भारी पड़ गया। यह तो स्पष्ट है कि जिस आतंकवाद की तरफ चिदंबरम इशारा कर रहे थे, उसमें इक्के-दुक्के साधु-साध्वी ही पकड़े गए हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं के कारण इसे भगवा आतंकवाद नहीं कहा गया है।
चिदंबरम यह मानकर चल रहे हैं कि यह जो जवाबी आतंकवाद चला है, उसके पीछे संघ और भाजपा का हाथ है, जबकि इन दोनों संगठनों ने बल्कि विश्व हिंदू परिषद ने भी समस्त हिंसक गतिविधियों की भत्र्सना की है। दूसरे शब्दों में चिदंबरम का बयान शुद्ध राजनीतिक था, लेकिन कांग्रेस भी उसे मानने को तैयार नहीं है।
आखिर क्यों? इसलिए कि यह बयान जितना नुकसान भाजपा और संघ आदि को पहुंचाता, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस को पहुंचाता। माना जाता कि कांग्रेस ने हर भगवाधारी के विरुद्ध अभियान चला दिया है। देश के साधु-संत और परम धार्मिक हिंदू लोग भी पसोपेश में पड़ जाते। वे आतंकवाद से घृणा करते हैं, लेकिन अब उन्हें लगता कि उन्हें आतंकवाद का समर्थक कहा जा रहा है। इस भावना के फैलते ही कांग्रेस के हिंदू वोटों में सेंध लग जाती। मुसलमान तो कांग्रेस से पहले ही बिदके हुए हैं, अब हिंदू वोटों के बिदकने पर कांग्रेस का सूपड़ा भी साफ हो सकता था।
गृहमंत्री की जरा सी भूल कांग्रेस को गहरे गड्ढे में उतार सकती थी। लेकिन कांग्रेसियों ने सही समय पर सही पैंतरा मार दिया। यदि कांग्रेस और भारत सरकार चिदंबरम के मुहावरे को उछाल देती, तो विदेश में भी भारत की छवि खराब होती। पाकिस्तान ने अपना आतंकवाद निर्यात के लिए बनाया था। भारत भेजने के लिए।
लेकिन भगवा आतंकवाद का इस्तेमाल तो भारत में ही होता, उसका निर्यात हम कहां करते। भारत की लड़ाई न तो पश्चिम के ईसाई देशों से है और न ही दुनिया के इस्लामी देशों से। भारत का भगवा आतंकवाद भारतीयों को ही मारता। उसमें हिंदू और मुसलमान दोनों ही मरते। भगवा आतंकवाद को भारतीय आतंकवाद के नाम से प्रचारित किया जाता और उसके मुकाबले पाकिस्तानी आतंकवाद को सही ठहराने के लिए नई तर्क-श्रंखला खड़ी की जाती। चिदंबरम का बयान अंततोगत्वा भाजपा-विरोधी नहीं, भारत-विरोधी सिद्ध होता।
अच्छा हुआ कि भगवा आतंकवाद शब्द का विरोध चारों तरफ से हुआ, लेकिन मेरा प्रश्न है कि बिल्कुल इसी तरह इस्लामी आतंकवाद शब्द का विरोध भी क्यों नहीं होता? इस्लाम का मतलब ही सलामती और शांति है। जैसे कि भगवा का अर्थ है। जैसे कुछ साधु-संन्यासियों के पकड़े जाने का मतलब यह नहीं कि आम हिंदू आतंकवाद के समर्थक हैं, ठीक उसी तरह कुछ मुसलमानों के पकड़े जाने के कारण सभी मुसलमानों को आतंकवाद का समर्थक कैसे मान लिया जाए? जैसे हिंदू या भगवा आतंकवाद शब्द अग्राह्य हैं, वैसे ही मुस्लिम या इस्लामी आतंकवाद शब्द भी अग्राह्य होना चाहिए।
इन शब्दों का प्रयोग करके हम व्यापक समुदायों को जबर्दस्ती आतंकवाद से जोड़ने का आयोजन कर देते हैं। यह काम चाहे अज्ञानवश ही होता है, लेकिन होता है, जरूर! आतंकवाद किसी के भी द्वारा किया जाए, उसकी खुली भत्र्सना होनी चाहिए। यह नहीं हो सकता कि तुम्हारा आतंकवादी तो आतंकवादी है और मेरा आतंकवादी क्रांतिकारी है। आतंकवाद हताशावाद की संतान है। वह वीरता नहीं, कायरता है। वह दृढ़ता नहीं, पलायन है।
जो बहादुर है, वह मारकर भागता नहीं है। सीना तानकर लड़ता है। और जो सचमुच वीर है, वह बम फेंक कर या बंदूक चलाकर छुट्टी नहीं पा लेता। वह अपने अधिकार के लिए, न्याय के लिए, बेजुबानों के लिए लंबी लड़ाई लड़ता है। वह राज्य की पाशविक शक्ति के मुकाबले नागरिकों की मानवीय और दैवीय शक्ति को खड़ा करता है। अत्याचार का मुकाबला करते-करते वह स्वयं अत्याचारी नहीं बन जाता। अंधा नहीं हो जाता। निहत्थे लोगों को मौत के घाट उतारने वाले लोग कोई भी चोला पहनें, भगवा, हरा, लाल या सफेद.. वह अंदर से काला ही होता है।
क्याआतंकवाद का कोई रंग होता है? चिदंबरम ने उसे भगवा आतंकवाद क्यों कह दिया? आतंकवाद को भगवा रंग में क्यों रंग दिया? भगवा रंग तो त्याग का, तपस्या का, शांति का, अहिंसा का रंग है। भगवा रंग जो भी धारण करता है, माना जाता है कि वह संन्यासी हो गया। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह से वह ऊपर उठ गया। इसीलिए चिदंबरम बोलकर बिदक गए। उन्होंने उस शब्द को दोहराया नहीं। कांग्रेस पार्टी ने भी इस बयान से खुद को अलग कर लिया। अब चिदंबरम क्या करते? वे अपना-सा मुंह लेकर रह गए।
लेकिन कोई क्या चिदंबरम की मजबूरी समझने की भी कोशिश करेगा? पता नहीं वे तमिल कितनी जानते हैं, लेकिन संस्कृत और हिंदी से वे अनभिज्ञ हैं, यह सभी को पता है। उनकी शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई है। हालांकि वे लोकसभा के चुनाव जीतकर ही मंत्री बनते हैं, लेकिन भारत को वे कितना समझते हैं, कहना कठिन है।
उन्हें क्या पता कि भगवा शब्द की महत्ता क्या है? उसकी व्याप्ति कितनी है? भारतीय दिमाग पर उसकी पकड़ कितनी है? उन्होंने अंग्रेजी का ‘सेफरन’ शब्द प्रयोग किया। यानी केसरिया! केसरिया बाना कब धारण किया जाता है, केसरिया पगड़ी या केसरिया उत्तरीय का भारतीय संस्कृति में क्या महत्व है, यह भारत के गृहमंत्री को पता तो होना चाहिए।
भगवा और केसरिया रंग बिल्कुल एक-जैसे नहीं होते। फिर भी अंग्रेजी-भाषा की शब्द-सामथ्र्य की कमी के कारण दोनों शब्दों को एक-जैसा ही मान लिया जाता है। चिदंबरम ने उसे केसरिया कहा या भगवा, इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। उसका अर्थ वही समझा गया, जो समझा जाना चाहिए था।
भगवा आतंकवाद शब्द पर भाजपा और संघ का भड़कना तो स्वाभाविक ही था, क्योंकि भगवा रंग पर राजनीतिक एकाधिकार किन्हीं संगठनों का अगर है तो इन्हीं का है। हालांकि कांग्रेस पार्टी के ध्वज में भी भगवा रंग सबसे ऊपर है, लेकिन भगवा रंग पर आप जब प्रहार करते हैं तो भाजपा, शिवेसना, संघ आदि संगठनों को ही आप अपना निशाना बनाते हैं। चिदंबरम के बयान का मतलब साफ था। वे इन्हीं संगठनों को इस नए आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे।
वे हिंदू आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते तो और बुरी तरह से फंस जाते। उन्होंने सरल रास्ता चुना। लेकिन यह सरल रास्ता भी उन्हें भारी पड़ गया। यह तो स्पष्ट है कि जिस आतंकवाद की तरफ चिदंबरम इशारा कर रहे थे, उसमें इक्के-दुक्के साधु-साध्वी ही पकड़े गए हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं के कारण इसे भगवा आतंकवाद नहीं कहा गया है।
चिदंबरम यह मानकर चल रहे हैं कि यह जो जवाबी आतंकवाद चला है, उसके पीछे संघ और भाजपा का हाथ है, जबकि इन दोनों संगठनों ने बल्कि विश्व हिंदू परिषद ने भी समस्त हिंसक गतिविधियों की भत्र्सना की है। दूसरे शब्दों में चिदंबरम का बयान शुद्ध राजनीतिक था, लेकिन कांग्रेस भी उसे मानने को तैयार नहीं है।
आखिर क्यों? इसलिए कि यह बयान जितना नुकसान भाजपा और संघ आदि को पहुंचाता, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस को पहुंचाता। माना जाता कि कांग्रेस ने हर भगवाधारी के विरुद्ध अभियान चला दिया है। देश के साधु-संत और परम धार्मिक हिंदू लोग भी पसोपेश में पड़ जाते। वे आतंकवाद से घृणा करते हैं, लेकिन अब उन्हें लगता कि उन्हें आतंकवाद का समर्थक कहा जा रहा है। इस भावना के फैलते ही कांग्रेस के हिंदू वोटों में सेंध लग जाती। मुसलमान तो कांग्रेस से पहले ही बिदके हुए हैं, अब हिंदू वोटों के बिदकने पर कांग्रेस का सूपड़ा भी साफ हो सकता था।
गृहमंत्री की जरा सी भूल कांग्रेस को गहरे गड्ढे में उतार सकती थी। लेकिन कांग्रेसियों ने सही समय पर सही पैंतरा मार दिया। यदि कांग्रेस और भारत सरकार चिदंबरम के मुहावरे को उछाल देती, तो विदेश में भी भारत की छवि खराब होती। पाकिस्तान ने अपना आतंकवाद निर्यात के लिए बनाया था। भारत भेजने के लिए।
लेकिन भगवा आतंकवाद का इस्तेमाल तो भारत में ही होता, उसका निर्यात हम कहां करते। भारत की लड़ाई न तो पश्चिम के ईसाई देशों से है और न ही दुनिया के इस्लामी देशों से। भारत का भगवा आतंकवाद भारतीयों को ही मारता। उसमें हिंदू और मुसलमान दोनों ही मरते। भगवा आतंकवाद को भारतीय आतंकवाद के नाम से प्रचारित किया जाता और उसके मुकाबले पाकिस्तानी आतंकवाद को सही ठहराने के लिए नई तर्क-श्रंखला खड़ी की जाती। चिदंबरम का बयान अंततोगत्वा भाजपा-विरोधी नहीं, भारत-विरोधी सिद्ध होता।
अच्छा हुआ कि भगवा आतंकवाद शब्द का विरोध चारों तरफ से हुआ, लेकिन मेरा प्रश्न है कि बिल्कुल इसी तरह इस्लामी आतंकवाद शब्द का विरोध भी क्यों नहीं होता? इस्लाम का मतलब ही सलामती और शांति है। जैसे कि भगवा का अर्थ है। जैसे कुछ साधु-संन्यासियों के पकड़े जाने का मतलब यह नहीं कि आम हिंदू आतंकवाद के समर्थक हैं, ठीक उसी तरह कुछ मुसलमानों के पकड़े जाने के कारण सभी मुसलमानों को आतंकवाद का समर्थक कैसे मान लिया जाए? जैसे हिंदू या भगवा आतंकवाद शब्द अग्राह्य हैं, वैसे ही मुस्लिम या इस्लामी आतंकवाद शब्द भी अग्राह्य होना चाहिए।
इन शब्दों का प्रयोग करके हम व्यापक समुदायों को जबर्दस्ती आतंकवाद से जोड़ने का आयोजन कर देते हैं। यह काम चाहे अज्ञानवश ही होता है, लेकिन होता है, जरूर! आतंकवाद किसी के भी द्वारा किया जाए, उसकी खुली भत्र्सना होनी चाहिए। यह नहीं हो सकता कि तुम्हारा आतंकवादी तो आतंकवादी है और मेरा आतंकवादी क्रांतिकारी है। आतंकवाद हताशावाद की संतान है। वह वीरता नहीं, कायरता है। वह दृढ़ता नहीं, पलायन है।
जो बहादुर है, वह मारकर भागता नहीं है। सीना तानकर लड़ता है। और जो सचमुच वीर है, वह बम फेंक कर या बंदूक चलाकर छुट्टी नहीं पा लेता। वह अपने अधिकार के लिए, न्याय के लिए, बेजुबानों के लिए लंबी लड़ाई लड़ता है। वह राज्य की पाशविक शक्ति के मुकाबले नागरिकों की मानवीय और दैवीय शक्ति को खड़ा करता है। अत्याचार का मुकाबला करते-करते वह स्वयं अत्याचारी नहीं बन जाता। अंधा नहीं हो जाता। निहत्थे लोगों को मौत के घाट उतारने वाले लोग कोई भी चोला पहनें, भगवा, हरा, लाल या सफेद.. वह अंदर से काला ही होता है।