आम नीम की छाँव

Saini Sa'aB

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आम नीम की छाँव
चलते चलते जब थक जाओ
सुस्ता लेना मेरे भैया
बरगद, नीम, आम की छाँव

जेठ मास की तपी दुपहरी
आग उगलता हो जब सूरज
पंछी हर नर नारी की
बारा बजा रही हो सूरत
हाथ पाँव फूले छाता के
तब सुस्ताना मेरे भैया
राह किनारे मेरा गाँव!
अपने घर का पता बता दूँ
द्वारे का नकशा समझा दूँ
चबूतरे पर छाँव घनेरी
शिमला नैनीताल दुपहरी
तन मन थक हो चकनाचूर
तब सुस्ताना मेरे भैया
ले देना, बस, मेरा नाँव!
अम्मा बापू घर न मिलेगें
हार खेत खलिहान ठिकाना
अय्या बाबा पके आम हैं
खुश होंगें उनसे बतियाना
मन में उठे सवाल पूछना
जी भर कर सुस्ताना भैया
फिर चल देना अपने ठाँव!
 
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