हर इक रिश्ते

Saini Sa'aB

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हर इक रिश्ते

हर इक रिश्ते- को झटके में तोड़ सकता हूँ
तेरे इशारे पे सबको मैं छोड़ सकता हूँ

बिखर गये हैं जो रेशे सभी मरासिम के
मैं उनको प्यार के धागे से जोड़ सकता हूँ

तवक्को जीने की अब और किसलिए मैं करूँ
क़लाई मौत की चाहूँ मरोड़ सकता हूँ

तू मेरी राह में अब भी जो हमसफ़र हो जाय
क़दम जो बहक गये उनको मोड़ सकता हूँ

गुलों की ख़शबू ने पहना लिबास शो'लों का
मैं उसके ज़ख्म पे शबनम निचोड़ सकता हूँ

घरौंदे खेल में मैंने रचे जो हाथों से
उन्हें मैं पॉँव की ठोकर से तोड़ सकता हूँ

न दे, तू क़द के बराबर मुझे न दे चादर
ठिठुरते जिस्म को अपने सिकोड़ सकता हूँ​
 
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