थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात ही मतवाले ,

Saini Sa'aB

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थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात ही मतवाले ,
कहाँ चले तुम राम नाम का पीताम्बर तन पर डाले |
इधर प्रयाग न गंगासागर , इधर न रामेश्वर काशी ,
इधर कहाँ है तीर्थ तुम्हारा , कहाँ चले तुम सन्यासी ||
चले झूमते मस्ती से तुम , क्या अपना पथ आये भूल ,
कहाँ तुम्हारा दीप जलेगा , कहाँ चढ़ेगा माला फूल ?
मुझे न जाना गंगासागर , मुझे न रामेश्वर काशी ,
तीर्थराज चितौड़ देखने को मेरी आँखें प्यासी |
अपने अचल स्वतंत्र दुर्ग पर , सुनकर वैरी की बोली ,
निकल पड़ी लेकर तलवारें , जहां जवानों की टोली |
जहां आन पर माँ बहनों ने , जौहर व्रत करना सीखा ,
स्वतंत्रता के लिए देश हित बच्चों ने मरना सीखा |
वहीं जा रहा पूजा करने , लेने सतियों की पग धूल,
वहीँ हमारा दीप जलेगा , वहीँ चढ़ेगा माला फूल ||
 
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