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सर्जिकल स्ट्राइक: PoK में 3 km अंदर घुसे थे कमांडो, मुश्किल थी वापसी, 5 प्वाइंट्स



28 सितंबर, 2016 की रात पहली बार LoC पारकर इंडियन आर्मी ने PoK में सर्जिकल स्ट्राइक की थी।

नई दिल्ली.एक साल पहले इंडियन आर्मी ने PoK में पहली बार लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इस ऑपरेशन में 38-40 आतंकी मारे गए और उनके 4 कैंप तबाह हुए थे। आर्मी के 125 पैरा कमांडोज ने PoK में 3 किलोमीटर अंदर घुसकर इसे अंजाम दिया। 28 सितंबर की रात 12.30 बजे शुरू हुई स्ट्राइक तड़के 4.30 बजे तक 4 घंटे चली थी। कमांडोज ने आतंकियों के लॉन्चिंग पैड को टारगेट कर 4 अलग-अलग सेक्टर में एक साथ हमला बोला था। लेकिन जवानों के सामने वापस लौटना बड़ी चुनौती थी। 5 प्वाइंट्स में पढ़ें, सर्जिकल स्ट्राइक की पूरी कहानी...
1) आर्मी ने क्यों की थी सर्जिकल स्ट्राइक?
- 18 सितंबर की रात PoK से घुसपैठ कर कश्मीर में दाखिल हुए आतंकियों ने उड़ी में आर्मी कैंप पर हमला किया था। इसमें 18 जवान शहीद हो गए थे। आर्मी ने आतंकी हमले का बदला लेने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। ऑपरेशन में उन दो यूनिट्स के जवानों को शामिल किया गया, जिनके जवान शहीद हुए थे।
2) कैसे हुई थी सर्जिकल स्ट्राइक की प्लानिंग?
- आर्मी, इंटेलिजेंस और RAW के टॉप अफसरों ने इनपुट जुटाने के बाद LoC के दूसरी तरफ टारगेट लिस्ट किए। इन्हीं कैंप से 7 दिन में 20 से ज्यादा बार घुसपैठ हुई थी। केंद्र सरकार के सामने ऑपरेशन को ब्रीफ करने से पहले इसके ऑप्शंस पर अनुभवी अफसरों ने काम किया। इस पूरी प्रॉसेस में एनएसए अजीत डोभाल काफी एक्टिव थे।
- घाटी के 4 लोगों के मोबाइल पर छिपे तौर पर कई बार कम्युनिकेशन करने पर PoK में टारगेट्स की जानकारी मिली थी। आखिर में ISI की मदद से चलाए जा रहे 4 लॉन्चिंग पैड टारगेट किए गए। इनकी हिफाजत पाकिस्तान की आर्मी कर रही थी।
3) कमांडोज ने ऐसे की थी सर्जिकल स्ट्राइक?
- उड़ी अटैक का बदला लेने के लिए आर्मी ने प्लानिंग की। इसे सरकार की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद आर्मी ने किलिंग मशीन कहे जाने वाले पैरा कमांडोज की 5 टीम बनाईं। 28 सितंबर की रात 12.30 बजे एलओसी के नजदीक चॉपर से टीमें उतरी गईं। हर टीम में करीब 25 कमांडो थे। कुल 125 कमांडो रेंगते हुए PoK में दाखिल हुए थे, ताकि दुश्मन को भनक न लगे। रात 2.30 बजे के आसपास 2-3 किमी पैदल कीचड़, पत्थर यहां तक की लैंडमाइंस को भी पार कर कमांडो आतंकियों के लॉन्च पैड तक पहुंचे।
- इस दौरान स्पेशल फोर्स के अलावा सेना की एक टुकड़ी कमांडोज का रूट सिक्योर कर रही थी। इन जवानों को बैकअप के लिए साथ रखा था। अगर टारगेट तक पहुंचने में कोई चुनौती मिलती तो इन्ही जवानों को उससे निपटना था। कमांडोज के कैमरे में हेलमेट लगे थे, जिससे ऑपरेशन की पूरी मॉनीटरिंग हो सके। इस ऑपरेशन की ड्रोन कैमरे से रिकॉर्डिंग भी की गई, ताकि सबूत रहे।
4) हमले में आतंकियों को कितना नुकसान हुआ?
- कमांडोज ने PoK के अलग-अलग सेक्टर में 4 आतंकी ठिकाने पर एक साथ हमला बोला। इस कार्रवाई में करीब 38-40 आतंकी मारे गए थे। इन कैम्पों में आतंकियों की ट्रेनिंग होती थी। इसके बाद उन्हें घुसपैठ कर LoC क्रॉस कराया जाता था। बता दें कि उस वक्त पीओके में 42 आतंकी कैंप एक्टिव थे। जिस इलाके में स्ट्राइक हुई, वहां 11-12 कैंप थे। कार्रवाई में 4 को टारगेट किया गया।
5) कमांडोज ने कैसे PAK सेना का सामना किया?
- ऑपरेशन को अंजाम देने के बाद कमांडोज का वापसी करना मुश्किल था। स्ट्राइक की खबर लगते ही पाकिस्तानी सेना फायरिंग करने लगी। कमांडोज ने भी इसका जवाब दिया। इसमें दो पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और उनकी कुछ चौकियों को भी नुकसान पहुंचा।
- स्ट्राइक के वक्त भारतीय सेना ने पाक सैनिकों और आतंकियों का ध्यान भटकाने के मकसद से पीओके के कुछ इलाकों में छिटपुट फायरिंग की।
# 5 बातें, जो स्ट्राइक के लीडर रहे मेजर ने बताईं

1. दो यूनिट के जवान रिवेंज मिशन में शामिल हुए
-ऑपरेशन के लीडर रहे एक मेजर (सांकेतिक नाम- माइक टैंगो) ने पिछले दिनों रिलीज हुई बुक "इंडियाज मोस्ट फियरलेस: ट्रू स्टोरीज ऑफ मॉडर्न मिलिट्री हीरोज' में बताया, ''उड़ी अटैक में नुकसान झेलने वाली दो यूनिट्स के जवानों को इस रिवेंज मिशन में शामिल किया गया था। इन्हीं यूनिट्स के जवानों को बॉर्डर पोस्ट पर तैनात किया गया। उन्हें इलाके के बारे में जरूरी बातें बताई गईं और सपोर्ट दिया गया, जिसकी जरूरत आगे मिशन में पड़ने वाली थी।''
2. मेजर टैंगो ने खुद चुनी थी अपनी टीम
-''इस ऑपरेशन में टीम लीडर चुने जाने पर मैंने टीम के हर मेंबर को खुद चुना। इसके अलावा उन लोगों को भी चुना जो इस ऑपरेशन में सपोर्टिंग रोल प्ले कर रहे थे। इस बात से पूरी तरह वाकिफ था कि टीम में शामिल मेंबर्स की जिंदगी मेरे हाथों में ही है। इसलिए इस काम के लिए बेस्ट कैंडिडेट ही चुने थे।''
3. PAK पोस्ट के नजदीक थे हमारे टारगेट
- ''ऑपरेशन के दौरान हमें अपने टारगेट्स तक पहुंचना था, वहां की स्टडी करनी थी। ताजा जानकारी के लिए वे अपनी सेटेलाइट डिवाइस का इस्तेमाल कर सकते थे। वहां मौजूद हर उस शख्स को मार गिराना था, जो दिखाई देता। हमारी टीम को 2 लॉन्च पैड्स का टारगेट मिला। टीम टारगेट से करीब 500 मीटर की दूरी पर थी। ये टारगेट PAK आर्मी पोस्ट के नजदीक थे। ISI के हैंडलर्स भी वहां बीच-बीच में आते थे।''
4. गोलियां जवानों के कानों से सीटी बजाती हुई निकलीं
-''टारगेट हिट करने के बाद जब कमांडो लौट रहे थे, तब पाकिस्तान की आर्मी ने फायरिंग की। एक मौका ऐसा भी आया, जब गोलियां हमारे जवानों के कानों से सीटी बजाती हुई गुजर रही थीं। अगर मैं एक फीट और लंबा होता तो मुझे कई बार गोली लग चुकी होतीं। लौटते वक्त पूरी टीम जमीन से सटी हुई थी। रास्ते में आने वाले पेड़ फायरिंग के चलते छलनी हो गए थे। गोलियां हमारे कुछ इंच की दूरी पर जमीन को भेद रही थीं। बचने के लिए कोई नेचुरल सपोर्ट नहीं था। हालांकि, हमारी टीम सूरज उगने से पहले करीब 4.30 बजे LoC क्रॉस कर लौट आई थी।''
5. दूसरे रास्ते से लौटे थे कमांडो
-''पहाड़ों की चढ़ाई की ओर से वापसी का रास्ता बेहद चुनौती भरा काम था। ऐसे में पाकिस्तान की आर्मी पोस्ट से आती गोलियों की तरफ कमांडोज की पीठ रहती। उनकी पोस्ट की पोजिशन की वजह से वापस लौट रहे लड़ाकों को आसानी से निशाना बनाया जा सकता था। ऑपरेशन से पहले हमने तय किया था कि जिस रास्ते से PoK में घुसेंगे, उससे वापस नहीं लौटेंगे। हमने इसके लिए अलग रास्ता चुना, जो लंबा और ज्यादा घुमावदार था। लेकिन ये पहले के मुकाबले काफी सेफ था।''
 
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