Saini Sa'aB
K00l$@!n!
शाम रच गई
कच्ची अमियों वाली
एक उदासी
लगे झूलने
यादों की डालों में
नये टिकोरे
तोते जैसा मन
बैठा पकने की
राह अगोरे
कानाफूसी
लगी फैलने
बहती तेज़ हवा-सी
भीतर एक अलाव जला कर
गुमसुम बैठे रहना
कितना
भला-भला लगता है
अपने से कुछ कहना
काँप-काँप
उठती जल सतहें
मछली हुई पियासी
कच्ची अमियों वाली
एक उदासी
लगे झूलने
यादों की डालों में
नये टिकोरे
तोते जैसा मन
बैठा पकने की
राह अगोरे
कानाफूसी
लगी फैलने
बहती तेज़ हवा-सी
भीतर एक अलाव जला कर
गुमसुम बैठे रहना
कितना
भला-भला लगता है
अपने से कुछ कहना
काँप-काँप
उठती जल सतहें
मछली हुई पियासी