छू गया जब कभी ख्याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा
कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में
और घर देर तक महकता रहा
रात हम मैक़दे में जा निकले
घर का घर शहर मैं भटकता रहा
उसके दिल में तो कोई मैल न था
मैं खुद जाने क्यूँ झिझकता रहा
मुट्ठियाँ मेरी सख्त होती गयी
जितना दमन कोई भटकता रहा
मीर को पढते पढते सोया था
रात भर नींद में सिसकता रहा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा
कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में
और घर देर तक महकता रहा
रात हम मैक़दे में जा निकले
घर का घर शहर मैं भटकता रहा
उसके दिल में तो कोई मैल न था
मैं खुद जाने क्यूँ झिझकता रहा
मुट्ठियाँ मेरी सख्त होती गयी
जितना दमन कोई भटकता रहा
मीर को पढते पढते सोया था
रात भर नींद में सिसकता रहा