~¤Akash¤~
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अब के बरसात का बादल भी अजब ही निकला
मैं था प्यासा वो मेरी छत को बचा कर निकला
सच कहने पे इसे बार भी उछले कई पत्थर
जख्म जिस सर पे थे हर बार ही मेरा निकला
लोग कहते थे उन होठों से बरसती है शफा
जाने जब भी पिया हमने तो ज़हर ही निकला
सारी उम्र जो करती रही मश्के सितम "अयान"
मेरे हाल पे उन आँखों से अश्कों का समंदर निकला...................
मश्के सितम = सितम करने का अभ्यास
शफा = अमृत
मैं था प्यासा वो मेरी छत को बचा कर निकला
सच कहने पे इसे बार भी उछले कई पत्थर
जख्म जिस सर पे थे हर बार ही मेरा निकला
लोग कहते थे उन होठों से बरसती है शफा
जाने जब भी पिया हमने तो ज़हर ही निकला
सारी उम्र जो करती रही मश्के सितम "अयान"
मेरे हाल पे उन आँखों से अश्कों का समंदर निकला...................
मश्के सितम = सितम करने का अभ्यास
शफा = अमृत