वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे तलाश कर न सका फिर मुझे वहाँ जाकर ग़लत समझ के जहाँ उसने खो दिया था मुझे बिखर चुका था अगर मैं तो क्यों समेटा था मैं पैरहन था शिकस्ता तो क्यों सिया था...