जिन्हें मैं ढूँढता था आस्मानों में ज़मीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ए-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती है महीनों में
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या गर्क़ होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में
जला सकती है शम-ए-कुश्ता को मौज-ए-नफ़स उनकी
इलाही क्या छुपा होता है अहल-ए-दिल के सीनों में
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
मुहब्बत के लिये दिल ढूँढ कोई टूटने वाला
ये वो मै है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में
बुरा समझूँ उन्हें मुझसे तो ऐसा हो नहीं सकता
कि मैं ख़ुद भी तो हूँ “इक़बाल” अपने नुक्ताचीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ए-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती है महीनों में
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या गर्क़ होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में
जला सकती है शम-ए-कुश्ता को मौज-ए-नफ़स उनकी
इलाही क्या छुपा होता है अहल-ए-दिल के सीनों में
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
मुहब्बत के लिये दिल ढूँढ कोई टूटने वाला
ये वो मै है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में
बुरा समझूँ उन्हें मुझसे तो ऐसा हो नहीं सकता
कि मैं ख़ुद भी तो हूँ “इक़बाल” अपने नुक्ताचीनों में