आ गया बाजार घर में

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
आ गया बाजार घर में
या कि घर बाजार में है।

धर्म बिकता कर्म बिकता
न्याय भी बिकने लगा है
शक्ल खोकर आदमी अब
वस्तु सा दिखने लगा है
मिल रहा सबकुछ यहीं पर
जो कहीं संसार में है।

वस्तुएँ लादे हुए
वे द्वार तक आने लगी हैं
नग्न हो विज्ञापनों में
देह दिखलाने लगी हैं
गाँव की वह शोख लडकी
अब इसी व्यापार में हैं।

यह अनूठा गाँव जिसमें
ढल गयी दुनिया हमारी
बेचना बिकना यहाँ
नवसभ्यता अब है हमारी
दुधमुहाँ भी दूरदर्शन की
निकटतम मार में है।
 
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