ये चूडिय़ां अच्छी हैं..........

मेरी किताबों में
तुम्हारी किताबों की तरह
सूखे हुए फूल नहीं हैं।
सूखे हुए, बेजान
फूलों को
सहेज कर
रखने का भला
फायदा भी
क्या है,
जो
न महकते हैं,
न खिलते हैं।

पर मेरी किताबों
में भी
कुछ है,
तुम देखना चाहोगे?
तो आओ
देखो चूूडिय़ों के
इन टुकड़ों को
क्यों खनखनाहट
सुनाई देती है,
सुनाई दी ना...

मेरी किताबों के पन्नों में
रखे कांच की
चूडिय़ों के टुकड़े
तुम्हारी किताबों में
रखे सूखे-मुरझा गए
फूलों की तरह बेजान नहीं हैं।

कांच की
यह चूडिय़ां
टूट गईं तो क्या?
यह आज भी
वैसे ही
खनकती हैं,
जैसे उस रात
खनकी थीं।

...और, आज भी
जब मैं
इन्हें छूता हूं
तो ये खनकती हैं
और बना देती हैं
वातावरण को
संगीतमय।

कांच के
इन टुकड़ों की
खनखनाहट
मुझे
और भी
बहुत कुछ
याद दिलाती है।

उसका वह
परी सा चेहरा,
मृगनयनी
सी
स्वप्निल आंखें
और उसके
लरजते होंठ

किताब में
पड़े
चूडिय़ो के ये
टुकड़े
जब खनकते हैं
तो लगता है
उसने
फिर मेरे पहलू में
करवट
बदली है
और इसी कारण
खनक
उठी हैं
उसकी चूडिय़ां...

आज
वह मेरे
पास नहीं है
पर यह
टूटी हुई
चूडिय़ां
मुझे उसकी
जुदाई का
अहसास नहींं
होने देतीं।
हर बार
एक नइ्र्र
खनखनाहट के
साथ
खनकती हैं
जैसे वह
नई चूडिय़ां
पहन कर
फिर मेरे पास
चली आई हो।

इसीलिए
मैं
तुम्हारी तरह
किताबों में
सूखे हुए,
बेजान
फूल नहीं रखता
जो न महक
सकते हैं, न खिल सकते हैं।

तुम्हारे इन
सूखे-बेजान फूलों
से तो
ये चूडिय़ां अच्छी हैं,
जो टूट कर भी
खनकती हैं
और, उसके
मेरे करीब होने का
अहसास दिलाती हैं।

यही कारण है
मैं किताबों में
सूखे हुए
फूल नहीं रखता।

मुझे तो
ये टूटी हुई
चूडिय़ां ही
प्रिय हैं,
जो टूट कर
भी
नहीं टूटी हैं
और
जरा सा
स्पर्श करते ही
कराती हैं
अपने और
उसके होने का
अहसास।
 
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