वो मन के कितना करीब था

Saini Sa'aB

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वो मन के कितना करीब था, अब वो कितना दूर हुआ,
एक आईना पत्थर से टकराकर चकनाचूर हुआ।

मेरी शोहरत मुझसे भी दो-चार कदम आगे चलती,
जहाँ गया मैं, वहाँ-वहाँ मेरा किस्सा मशहूर हुआ।

सबसे अलग दमकता चेहरा, कैसा नूर बरसता था,
अलग-थलग पड़कर वह चेहरा बेरौनक, बेनूर हुआ।

जब तक मंज़िल की तलाश थी, तब तक था मासूम बहुत,
मंज़िल मिलते ही बनजारा, अब कितना मगरूर हुआ।

खरी सचाई ढो-ढोकर हम पिछड़े नए ज़माने में,
नए दौर में नकलीपन ही दुनिया का दस्तूर हुआ।

हम सीने में ज़ख़्म छिपाए थे बेहद बेफ़िक्र, मगर
धीर-धीरे ज़ख़्म हमारा बढ़कर अब नासूर हुआ।

दौलत मिलती, इज़्ज़त मिलती, शोहरत भी मिलती, लेकिन,
औरों की शर्तों पर जीना हमें कहाँ मंज़ूर हुआ!
 
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