वो कभी मुझ तक पहुचेंगे नहीं, दिल ओ की आह बन गए हे बस, निकल जाते घर से भी तो बात थी, नामुनासिब की चाह बन गए हे बस, कभी महफ़िल में ग़ज़ल बनते थे, वो दीवानों की वाह बन गए हे बस