'उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखती

~¤Akash¤~

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'उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखती ,
और मैं सोचती हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखती.'

'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखती.'

'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखती.'

'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखती.'

'शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखती.'

'उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखती.'

'समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखती हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखती.'

'पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करती हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखती.'

'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि 'मैं' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखती'
 
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