Kabir Sharma
Elite
शिरकत
अब तक सन्ना रहा है तप्त आसमान
भटक रहा है आँधियों में झुलसता गिद्ध
थकता है दिन
पत्ते होते हैं सुर्ख़
शान्त पड़ते हैं वृक्ष
फिर भी काफ़ी गति है हवा में
दर्द से सिहर उठती हैं फुनगियाँ
जब पोरों में सूखता है आख़िरी कतरा
खखोरता है खुरपे पर
कोई बचा-खुचा सीमेंट
कान्हे पर लिए बन्दूक
खोजता है पानी एक जवान
और उधर
फिसलता है सूरज / उतरती है ज़मीन पर /
जले हुए जंगलों की राख
आज की तारीख़ में
इतनी सी शिरकत
करता है इतिहास
अब तक सन्ना रहा है तप्त आसमान
भटक रहा है आँधियों में झुलसता गिद्ध
थकता है दिन
पत्ते होते हैं सुर्ख़
शान्त पड़ते हैं वृक्ष
फिर भी काफ़ी गति है हवा में
दर्द से सिहर उठती हैं फुनगियाँ
जब पोरों में सूखता है आख़िरी कतरा
खखोरता है खुरपे पर
कोई बचा-खुचा सीमेंट
कान्हे पर लिए बन्दूक
खोजता है पानी एक जवान
और उधर
फिसलता है सूरज / उतरती है ज़मीन पर /
जले हुए जंगलों की राख
आज की तारीख़ में
इतनी सी शिरकत
करता है इतिहास