पयार की गंगा बहने दो..Gerry

वो भी कया दिन थे , जब हम मासूम थे
जब से होश समंभाला है , जात-पात मे खो गए

ना रिशतों की डोर, ना नीयत में चोर था
कैसी थी वो ज़िंदगी सपनों का दोर था
आज दोलत का ज़ोर है लालची हम हो गए
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ना बैर था, ना विरोध था, ना ज़िंदगी उदास थी
चुलबुली थी हरकतेँ मासुमियत ही पास थी
आज हम जवान हैं बस आशिकी में खो गए
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वो भी तो जवान थे जिनका खोलता यह खून था
देश करेंगे आज़ाद हम बस एक ही जनून था
जिस माटी के वो लाल थे उस माटी में हीं खो गए
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रंग बिरंगा देश हमारा ईसे रंग बिरंगा ही रहने दो
जात-पात ओर नफरत छोड़ो पयार की गंगा बहने दो.....गुरविंदर सिंह.गैरी । 3/4/2013
 
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