mittalramit4u
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हम हैं मता-ओ-कूचा-ए-बाज़ार की तरह,
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह,
वो तो कहीं हैं और मगर दिल के आस-पास,
उठती है कोई शै निगाह-ए-यार की तरह,
मज़रूह लिख रहे हैं वो अहले-वफा का नाम,
हम ही खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह,
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह,
वो तो कहीं हैं और मगर दिल के आस-पास,
उठती है कोई शै निगाह-ए-यार की तरह,
मज़रूह लिख रहे हैं वो अहले-वफा का नाम,
हम ही खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह,