मिर्ज़ा गालिब

जो आऊँ सामने उनके, तो मरहबा न कहें
जो जाऊँ वाँ से कहीं को, तो खैरबाद नहीं

कभी जो याद भी आता हूँ मैं, तो कहते हैं
कि, आज बज़्म में फितना-ओ-फसाद नही.

जहाँ में हो गम-ओ-शादी बहम, हमें क्या काम
दिया है हम को खुदा ने वह दिल, कि शाद नहीं

तुम उन के वादे का ज़िक्र उन से क्यों करो, गालिब
यह क्या, कि तुम कहो, और वह कहें, कि याद नहीं
 
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