कब आते हो कब जाते हो दिन मे कितनी बार मझे तुम

~¤Akash¤~

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ना आने की आहट ना जाने की टोह मिलती है
कब आते हो कब जाते हो
इमली का ये पेड़ हवा मे हिलता है तो मिटटी की दीवारों पर परछाई का छीटा पड़ता है
और ज़स्प हो जाता है जैसे सूखी मिटटी पर कोई पानी का कतरा फेंक गया हो
धीरे धीरे आंगन मे फिर धूप सिसकती रहती है कब आते हो कब जाते हो.......
बंद कमरे मे जब दीए की लो अचानक हिल जाती है तो एक बड़ा सा साया मुझे घूट घूट पीने
लगता है आँखे मुझसे दूर बैठकर मुझको देखती रहती है
कब आते हो कब जाते हो दिन मे कितनी बार मझे तुम याद आते हो......................
 
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