किया हैं बोझ फिर भी कम सदा मेरे गुनाहों का...

~¤Akash¤~

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मैं आशिक हूँ दिलों की सादगी वाली निगाहों का
नहीं करता मैं पीछा महजबीं झूठी अदाओं का

जला देंगी शहर को ये तुम्हारे साथ में मिलकर
चरागों साथ ना मांगो तुम इन जालिम हवाओं का

खुदा के सामने जाकर बहुत पछताओगे मुन्सिफ
कटेगा सर सुना हैं हश्र में झूठे गवाहों का

पनाहें मांगते हो क्यूँ मियां अब तुम बुढ़ापे में
ये सारा खेल हैं जितने किये अब तक गुनाहों का

ना हो गा मोतबर करने से खंजर कुछ भी ओ कातिल
मेरे सर पे हैं पहरा आज भी माँ की दुआओं का

नमाजी भी न था इतना बड़ा मैं तो मेरे यारब
किया हैं बोझ फिर भी कम सदा मेरे गुनाहों का...
 
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