काले घने घुँगराले बाल -haas kavita

काले घने घुँगराले बाल
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काले घने घुँगरले ये शब्द ,दो शब्दकोष से निकाल
क्योकि इनका बालो की लिए होता है इस्तेमाल !

कभी ये तीनो शब्द मुझे भी बहुत प्रिय थे ,
लगता था की जैसे ये मेरे लिए ही बने थे !

सर पे लहलाहाती खेती पे मुझ को था अभिमान ,
मेरी गर्लफ्रेंड को भी मेरे बालो पे था गुमान !

याद है कैसे प्यार से मेरे बालो पे हाथ फेरती थी ,
जलने वालो की नज़र मुझी ही टेरती थी !

हर पार्टी मैं बालो की तारीफ करते थे यार ,
मैं भी क्रीम और जेल लगा के देता नित-नये आकर !

कोई मुझे ऋतिक तो कोई संजय द्त्त पुकारता ,
मैं भी बड़े चाओ से अपने बालो को निहारता !

याद है वो मनहूस घड़ी,बुरा हुआ था मेरा हाल ,
जब कंघी करी और देखा झढ़ रहे थे मेरे बॉल !

एक-एक कर लगे थे गिरने ,मेरा सर रहे थे छोड़ ,
लग रहा था जैसे जल्दी निकलने की लगी थी उनमे होड़ !

मेरे तो होश उड़ गये तब लोगो से ली राय ,
सोच रहा था किस कम्बख़त की मुझ को लग गयी हाय !

दही, माखन ,सहद, नीबू सब कुछ बालो मैं लगाया ,
पर कुद्रत को कुछ और मंजूर था कुछ काम ना आया !

जड़ी-बूटी,दवाई और लगाए कई सारे तेल ,
पर मेरे सर पे लगते ही सभी हो गये फेल !

मेरा तो चेहरा बदल गया और आया नया रूप ,
दूर से ही पहचाना जाता जब सर पे पड़ती धूप !

अपनो ने अनदेखा किया ,गर्लफ्रेंड ने भी छोड़ा
मुझसे नातातोड़ घने बालो वाले से नाता जोड़ा!

सुभचिंतको ने खूब समझाया,कहा ना लो टेन्षन ,
आज तो हीरो भी सर मुंडा रहे गंजेपन का ही फैशन !

कई गंजे हीरो की दिखा के फोटो मन मेरा बहलाते ,
मुझे ग़ज़नी का आमिर ख़ान बता मुझे खूब फुसलाते !

मैने चंद दीनो मैं ही अपना सब कुछ खोया ,
कई बार दुखी हुआ अपनी फोटो देख के रोया !

समझ ले पायारे एक बार जो फसल ये कट जाती ,
लाख कर लो कोशिश ये फिर वापस नही आती !

आओ बताउ एक बात ,जो मेरे दादी मुझे बतलाती ,
बाहर की काया तो मिट जाती ,मन की सुंदरता ही रह जाती !


डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
 
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