कुछ जीर्ण क्षण

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
कुछ जीर्ण क्षण

समय का वो भूला पथिक
खड़ा मेरे आज के द्वार पर
कुछ क्षण उधार लेने
भ्रमित सा
असंपूर्ण कहानी के पात्र जैसा
उस स्वर्णिम स्वप्न के
मधुर विषाक्त क्षण को
आमंत्रण दे रहा
जानबूझ कर
बार बार उस जीर्ण क्षण में
वापस जाने को चंचल
उस वृद्धा में रूका हुआ
भूले पथिक का जीवन
स्मृति से लथपथ
परिणति से अनभिज्ञ
निस्तार कैसे पायेगा मन
पदचिह्नों को पहचानने
की चेष्टा व्यर्थ होगी
कि सामने की उजली किरण
के पीछे की छाया होती है
काली अंधेरी ठंडी निष्प्राण।
 
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