ईमानदारी का कीड़ा -ek haas kavita

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ईमानदारी के बोझ तले दब मन मैं उठे है पीड़ा
क्या करेगे वो जिनको है ईमानदारी का कीड़ा

बैइमान करे खूब मोज खा के उपर की मलाई
तुझको जितनी मिले है तनख़्वा ,उसमे घर चले ना भाई

बात-बात पे घर वाले तुझको देते ताने
दूसरो का सुख दिखा तुझी को दोसि माने

उनका बक्चा पा गया सीट दे कर के डोनेशन
तेरे बक्चा को भारी पड़ गया पास करना कंपीटिस्न

रिसवातखोरो के घर बन गये और कार मैं बेठे झूमे
तेरे पास बस दोपहिया है तू उसी से घूमे

तेरे जूनियर उपर उठ गये खिला-खिला के पैसा
तू जहा का तहा रह जगा जैसे का तैसा

तेरे आदरसो ने क्या दिया बस दो वक़्त की रोटी
वो घूम रहे हवाइज़हाज़ मैं कर के जेबे मोटी

कभी -कभी जी घबराए मन मैं हो दुख
कलयुग का टाइम चल रहा कहा से पाए सुख

मत भूल बैमानी का पैसा खा सब एक दिन रोए
तेरे पास अनमोल रतन है तू चैन से सोए

सोच रहा राजीव की गर ये कीड़ा सब मैं घुस जाए
इस जीवन का सुख भोग मानस मोक्च यही पे पाए


डॉक्टर राजीव श्री वास्तवा
 
मत भूल बैमानी का पैसा खा सब एक दिन रोए
तेरे पास अनमोल रतन है तू चैन से सोए
 
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