दीए भी बुझा देता हूँ

दीए भी बुझा देता हूँ रोशिनी को भी मिटा देता हूँ लगता है डर उजालो से परदे भी गिरा देता हूँ अंधेरो के साए में अक्सर वक़्त बिता देता हूँ इस कदर से मिले है धोखे मुझको परछाइयों को भी दूर भगा देता हूँ कलम :- हरमन बाजवा ( मुस्तापुरिया )
 
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