JobanJit Singh Dhillon
Elite
दीए भी बुझा देता हूँ रोशिनी को भी मिटा देता हूँ लगता है डर उजालो से परदे भी गिरा देता हूँ अंधेरो के साए में अक्सर वक़्त बिता देता हूँ इस कदर से मिले है धोखे मुझको परछाइयों को भी दूर भगा देता हूँ कलम :- हरमन बाजवा ( मुस्तापुरिया )