छोड़ आए

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
छोड़ आए

छोड़ आए हम अजानी
घाटियों में
प्यार की शीतल-हिमानी छाँह।

हँसी के झरने,
नदी की गति,
वनस्पति का
हरापन
ढूँढ़ते है फिर
शहर-दर-शहर
यह भटका हुआ मन
छोड़ आए हम हिमानी
घाटियों में
धार की चंचल, सयानी छाँह।
ऋचाओं-सी गूँजती
अंतर्कथाएँ
डबडबाई आस्तिक ध्वनियाँ,
कहां ले जाएँ
चिटकते हुए मनके
सर्प के फन में
पड़ी मणियाँ,
छोड़ आए हम पुरानी घाटियों में
काँपते-से पल, विदा की बाँह।

 
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