Saini Sa'aB
K00l$@!n!
चाँद उतर आया है
पिछवारे पोखर में
चुपके से चाँद उतर आया है।
पोखर जल काँप रहा
थमी पुरवाई है
आँगन की सोनपरी
सहमी सकुचाई है
झुकी-झुकी पलकों ने आपस में
धीरे बतियाया है।
कंचन मृग-सा रूप
तुम्हारा छलता है
मेरे मन में संशय एक
सदा पलता है
मृग-मरीचिका के पीछे मन
बार-बार भरमाया है।
खड़ा द्वार मेरे जो
हरसिंगार हुलसित है
तुलसी के बिरवे का
पोर-पोर पुलकित है
देख रूप को रूप आज फिर
क्यों शरमाया है।
पिछवारे पोखर में
चुपके से चाँद उतर आया है।
पोखर जल काँप रहा
थमी पुरवाई है
आँगन की सोनपरी
सहमी सकुचाई है
झुकी-झुकी पलकों ने आपस में
धीरे बतियाया है।
कंचन मृग-सा रूप
तुम्हारा छलता है
मेरे मन में संशय एक
सदा पलता है
मृग-मरीचिका के पीछे मन
बार-बार भरमाया है।
खड़ा द्वार मेरे जो
हरसिंगार हुलसित है
तुलसी के बिरवे का
पोर-पोर पुलकित है
देख रूप को रूप आज फिर
क्यों शरमाया है।