ऐ फूल सी चेहरों.. ज़रा इतना तो बताओ

दिल हुस्न की शोलों में जला क्यों नहीं देते?
तुम मुझको मुहब्बत की सज़ा क्यों नहीं देते ?​

दिल की सुनसान राहों गुज़र जाती हो चुपचाप
जो दिल पे गुज़रती हैं बता क्यों नहीं देते?​

इक आग जो भुजती हैं न भटकती हैं दिल में
उस आग को दामन की हवा क्यों नहीं देते?​

ऐ फूल सी चेहरों.. ज़रा इतना तो बताओ
तुम दर्द तो देते हैं, दवा क्यों नहीं देते?​
 
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