ab mujhe unse koi shikayat na rahi
iski bhi unko mujhse shikayat hai yaaron
हम रातों को उठ-उठ के जिनके लिए रोते हैं
वो गैर की बाहों में आराम से सोते हैं
हर शम्आ बुझी रफ्ता रफ्ता हर ख्वाब लुटा धीरे - धीरे
शीशा न सही पत्थर भी न था दिल टूट गया धीरे - धीरे