बदलाव के ट्रैक पर एजुकेशन सिस्टम

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है कि सरकार मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के
कानून की मदद से देश के शिक्षा परिदृश्य को पूरी तरह बदलने को तैयार है। सरकार का कहना है कि उसका उद्देश्य सभी बच्चों को समता और भेदभाव रहित सिद्धांतों के आधार पर क्वॉलिटी एजुकेशन सहजता के साथ उपलब्ध कराना है।

इस बार के बजट में स्कूली शिक्षा के लिए 31 हजार 36 करोड़ रुपये रखे गए हैं। मौजूदा वित्त वर्ष की तुलना में यह राशि 3,236 करोड़ ज्यादा है। इसके साथ ही राज्यों को वर्ष 2010-11 में प्रारंभिक शिक्षा के लिए 3,675 करोड़ रुपये अनुसंशित अनुदानों के तहत अलग से दिए जाएंगे।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि 1 अप्रैल से शिक्षा के अधिकार कानून को अमली जामा पहनाने का काम शुरू हो जाएगा। बजट में इस बात का ध्यान रखा गया है कि इस कानून के क्रियान्वयन में केंद्र की तरफ से राशि में कमी न हो। यह पूरी योजना राज्यों के सक्रिय सहयोग से ही मूर्त रूप ले सकती है।

देशभर में चलाए जा रहे सर्व शिक्षा अभियान को और गति मिलेगी। इसके लिए 15,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील देने के लिए 9,440 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा के विस्तार के लिए 1,700 करोड़ रुपये और प्रौढ़ शिक्षा व दक्षता विकास के लिए 1,167 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

हायर एजुकेशन को अधिक सार्थक बनाने के लिए यूजीसी को 4,390 करोड़ रुपये दिए गए हैं। तकनीकी शिक्षा के लिए 4,706 करोड़ रुपये और आईटी के जरिए शिक्षा के प्रचार व विस्तार पर 900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि देश में आईटी के जरिए एजुकेशन डिवेलपमेंट को एक नैशनल मिशन के रूप में लिया गया है। बजटीय प्रावधानों का उपयोग समयबद्ध कार्यक्रम तैयार करके किया जाएगा। मंत्रालय के सेंट्रल आउट-ले प्लान की कुल बजट राशि 42 हजार 36 करोड़ रुपये है। मौजूदा वित्त वर्ष की तुलना में यह राशि 11 हजार 357 करोड़ रुपये ज्यादा है।
 
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