बहादुर शाह ज़फर

उमर-ए-दराज़ लाए थे, मांग कर हम चार दिन,
दो आरज़ू में कट गए, दो इंतज़ार में,

कितना बदनसीब है ज़फर, कि दफन को,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली, कूए-यार में।
 
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