गंधपूरित हैं हवाएँ

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
गंधपूरित हैं हवाएँ
हाँ! दरख्तों ने
नए फिर वस्त्र हैं पहने!

गंधपूरित
हैं हवाएँ
चाँदनी साँसें हुईं

मूक है
वाणी ह्रदय की
मौन में बातें हुईं

डालियों पर फिर
वहीं हैं पुष्प के गहने!

रंग की
जादूगरी हर ओर
है दिखने लगी
खुशबुएँ
अनुबंध अपने
फिर नए लिखने लगीं

जड़ हों या चेतन
सभी के आज क्या कहने!
 
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