~¤Akash¤~
Prime VIP
वो अपने घर के दरीचो से झांकता कम है
ताल्लुकात तो अब भी है राबता कम है
फिजूल तेज हवाओं को दोष देता है
उसे चराग जलने का होंसला कम है
बिला सबब ही मिया तुम उदास रहते हो
तुम्हारे घर से तो मस्जिद का फासला कम है
मैं अपने बच्चों की खातिर जान ही दे देता
मगर गरीब की जाँ का मुआवजा कम है....................
ताल्लुकात तो अब भी है राबता कम है
फिजूल तेज हवाओं को दोष देता है
उसे चराग जलने का होंसला कम है
बिला सबब ही मिया तुम उदास रहते हो
तुम्हारे घर से तो मस्जिद का फासला कम है
मैं अपने बच्चों की खातिर जान ही दे देता
मगर गरीब की जाँ का मुआवजा कम है....................