यह अब के काली घटाओं के गहरे साये में

Saini Sa'aB

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यह अब के काली घटाओं के गहरे साये में
जो हम पे गुजरी है ऐ “चाँद ” हम समझते हैं

जब पुराने रास्तों पर से कभी ग़ुज़रे हैं हम
कतरा कतरा अश्क बन कर आँख से टपके हैं हम

तुन्द हवाओं तुफानों से दिल घबराता है
हल्की बारिश का भीगा पन अच्छा लगता है

अपने अश्कों से मैं सींचूँगा तेरे गुलशन के फूल
चार सु बू-ए-मोहब्बत को मैं फैला जाऊँगा

जो पूरी कायनात पे बरसाए चाँदनी
ऐसा भी किया के उसको दुआएँ न दीजिए

तेरी बातों की बारिश मैं भीग गया था
फिर जा कर तन मन का पौदा हरा हुआ था

तपते सहराओं में देखा है समुन्दर मैंने
मेरी आंखों में घटा बन के बरसता क्या है

ऐ घटा मुझको तू आँचल में छुपा कर ले जा
सुखा पत्ता हूँ मुझे साथ उड़ा कर ले जा

कदम कदम पे हमें मौसमों ने रोका था
हम अपनी आँख में बरसात किए फिरते रहे
 
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