~¤Akash¤~
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ख़मोशी बोल उठे, हर नज़र पैग़ाम हो जाये
ये सन्नाटा अगर हद से बढ़े, कोहराम हो जाये
सितारे मशालें ले कर मुझे भी ढूँडने निकलें
मैं रस्ता भूल जाऊँ, जंगलों में शाम हो जाये
मैं वो आदम-गजीदा[1] हूँ जो तन्हाई के सहरा में
ख़ुद अपनी चाप सुन कर लरज़ा-ब-अन्दाम हो जाये
मिसाल ऎसी है इस दौर-ए-ख़िरद के होशमन्दों की
न हो दामन में ज़र्रा और सहरा नाम हो जाये
शकेब अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफ़ी है
हम उससे बच के चलते हैं जो रास्ता आम हो जाये
शब्दार्थ:
1. आदमियों का डसा हुआ
ये सन्नाटा अगर हद से बढ़े, कोहराम हो जाये
सितारे मशालें ले कर मुझे भी ढूँडने निकलें
मैं रस्ता भूल जाऊँ, जंगलों में शाम हो जाये
मैं वो आदम-गजीदा[1] हूँ जो तन्हाई के सहरा में
ख़ुद अपनी चाप सुन कर लरज़ा-ब-अन्दाम हो जाये
मिसाल ऎसी है इस दौर-ए-ख़िरद के होशमन्दों की
न हो दामन में ज़र्रा और सहरा नाम हो जाये
शकेब अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफ़ी है
हम उससे बच के चलते हैं जो रास्ता आम हो जाये
शब्दार्थ:
1. आदमियों का डसा हुआ