Urdu Poetry only.

Kabhi Jo Toot Ke Barsa December,
Laga Apna, Bohat Apna December..!!!

Guzar Jata Hai Sara Saal Yun To
Nahin Kat’ta Magar Tanha December...!!!


Bhala Barish Say Kia Sairaab Hoga
Tumharay Wasl Ka Piyasa December..!!!

Woh Kab Bichra? Nahi Ab Yaad Lekin
Bus Itna Yaad Hai Ke Tha December...!!!

Jama Poonji Yehi Hai Umar Bhar Ki..
Meri Tanhai Aur Mera December..!!!!


by :Bilal

 
Dard ki had se guzarna to abhi baqi hai
toot kar mera bikharna to abhi baqi hai
paas aa kar mere dukh dard bataane waale
mujhse katra k guzarna to abhi baqi hai
chand sheron me kahan dhalti hai ehsaas ki aag
gham ka ye rang nikharna to abhi baqi hai...!!!



by .....saad.....
 
मैं ने कहा ख़याल-ए-वस्ल, उसने कहा कि ख्वाब है
मैं ने कहा फ़रोग़-ए-हुस्न, उसने कहा हिजाब है

मैं ने कहा कि बात मान, चेहरे को बे-नक़ाब कर
उसने कहा कि ज़िद न कर दीद की तुझ को ताब है?

मैं ने कहा कि ख़राब हूँ गर्दिश-ए-चश्म-ए-मस्त से
उसने कहा कि रक़्स कर सारा जहाँ खराब है
[chashm=eyes] [raqs=dance]
मैं ने कहा सुकूँ नहीं ग़म की सियाह रात में
उसने कहा कि फ़िक्र क्या? जाम है, शराब है

मैं ने कहा खबर नहीं क्यूँ तुझे काएनात की
उसने कहा शबाब की कैफियत शबाब है

मैं ने कहा कि ख्वाब में देखे हैं गेसू-ए-हसीं
उसने कहा कि ज़िंदगी अब तेरी पेच-ओ-ताब है

मैं ने कहा कि इश्क़ का तुम को भी कुछ है तजरुबा
उसने कहा कि इश्क़ क्या, इश्क़ तो लाजवाब है

मैं ने कहा सुहैल से राज़-ओ-नयाज़ खूब हैं
उसने कहा सुहैल का इश्क़ ही कामयाब है........

by सुहैल काकोरवी
 
चंद रोज़ और मेरी जान फक़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पर मजबूर हैं हम
इक ज़रा और सितम सह लें, तड़प लें, रो लें
अपने अजदाद की मीरास है माजूर हैं हम


(अजदाद = ancestors, मीरास = ancestral property, माजूर = helpless)

जिस्म पर क़ैद है ज़ज्बात पे जंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है गुफ्तार पे ताजीरें हैं
और अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
जिंदगी क्या किसी मुफलिस की कबा है
जिस में हर घड़ी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं

(महबूस = captive, गुफ्तार = speech, ताजीरें = punishments, मुफलिस = poor, कबा = long gown)

लेकिन अब ज़ुल्म की मियाद के दिन थोड़े हैं
इक ज़रा सब्र कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं

अरसा-ए-दहर की झुलसी हुई वीरानी में
हमको रहना है पर यूँ ही तो नहीं रहना है
अजनबी हाथों का बेनाम गरांबार सितम
आज सहना है हमेशा तो नहीं सहना है

(अरसा-ए-दहर=life-time, गरांबार = heavy)

ये तेरी हुस्न से लिपटी हुई आलाम की गर्द
अपनी दो-रोजा जवानी की शिकस्तों का शुमार
चांदनी रातों का बेकार दहकता हुआ दर्द
दिल की बेसूद तड़प जिस्म की मायूस पुकार

(आलाम = sorrow, शिकस्त = defeat, शुमार = inclusion)

चंद रोज़ और मेरी जान फक़त चंद ही रोज़ …

by फैज़ अहमद फैज़
 
Woh Log Bohot Khush-Qismat The
Jo Ishq Ko Kaam Samajhte The
Ya Kaam Se Aashiqi Karte The
Hum Jeete Jee Masroof Rahe
Kuch Ishq Kiya, Kuch Kaam Kiya
Kaam Ishq Ke Aarey Aata Raha
Aur Ishq Se Kaam Ulajhta Raha
Phir Aakhir Tang Aa Kar Hum Ne
Dono Ko Adhoora Chor Diya...!!!



by ....saad.....
 
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